UP : मां के दूध के साथ दें पूरक आहार, स्वस्थ जीवन का बनेगा आधाररू: डॉ0 सिद्धार्थ
पोषण के मुख्य कारकों (आहार, स्वास्थ्य और देखभाल) पर दें जोर
नियमित टीकाकरण और स्वास्थ्य जांच का रखें विशेष ध्यान
बलिया। बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए शुरू के 1000 दिन यानि कि गर्भकाल के 270 दिन और बच्चे के जन्म के बाद के 2 साल (730 दिन) तक का समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान पोषण का खास ख्याल रखना बहुत ही जरूरी होता है, क्योंकि इस दौरान स्वास्थ्यगत नुकसान पूरे जीवन चक्र को प्रभावित कर सकता है। उचित पोषण प्रदान करके संक्रमण, विकलांगता, बीमारियों व मृत्यु की संभावना को कम कर के जीवन में विकास की नींव रखी जा सकती है। मां और बच्चे को सही पोषण उपलब्ध कराकर बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई जा सकती है और बच्चे को स्वस्थ रखा जा सकता है। उक्त जानकारी प्रश्नोत्तर केंद्र (पीपीसी, जिला महिला चिकित्सालय) पर कार्यरत वरिष्ठ नवजात शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ0 सिद्धार्थ मणि दुबे ने दी। डॉ0 दुबे ने बताया कि शुरू के 1000 दिन बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण अवधि हैं, जिसमें बच्चे और मां को सही पोषण प्रदान कर उन्हें स्वस्थ और खुशहाल जीवन दिया जा सकता है। कुपोषण का एक चक्र होता है और इसे तोड़ने में गर्भवती मां एवं उसके बच्चे को संतुलित, पोषण आहार देना अहम भूमिका अदा करता है। जब बच्चा 6 माह (180 दिन) का हो जाता है तब केवल स्तनपान शिशु की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होता है। इस समय बच्चे का विकास तीव्रता से होता है और उसे अतिरिक्त पोषण की आवश्यकता होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार शिशु को 6 माह के बाद स्तनपान के साथ-साथ पूरक आहार भी शुरू करना चाहिए। बच्चे को देर से पूरक आहार देने की स्थिति में उसका विकास धीमा हो जाता है या रुक जाता है तथा बच्चों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने की संभावना बढ़ जाती है और वह कुपोषित हो सकता है। इसलिए स्तनपान के साथ-साथ 6 से 8 माह के आयु के बच्चों को 100 से 150 एम एल तक की कटोरी में अर्धठोस दिन में दो बार देना चाहिए। वहीं 9 से 11 माह के बच्चे को 150 से 200 एम एल की कटोरी में अर्ध ठोस आहार दिन में तीन से चार बार देना चाहिए। यह 11 से 23 माह के बच्चे को स्तनपान के साथ-साथ 250 एम एल की पूरी कटोरी दिन में तीन से चार बार देनी चाहिए और साथ में एक से दो बार नाश्ता भी खिलाएं। भोजन में चतुरंगी आहार (लाल, सफेद, हरा व पीला) जैसे दाल, अनाज, हरी पत्तेदार सब्जियां, मौसमी फल, दूध व दूध से बने उत्पादों को बच्चों को खिलाना चाहिए। बच्चों को स्वच्छ पेयजल ही पिलाएं।
गर्भावस्था के दौरान रखें यह सावधानियां
डॉ0 दुबे ने बताया कि गर्भावस्था की पहचान होने पर अतिशीघ्र निकटतम स्वास्थ्य केंद्र पर जाकर पंजीकरण कराएं, नियमित स्वास्थ्य जांच कराते रहें। पौष्टिक एवं संतुलित आहार का सेवन कराएं,आयरन-फोलिक एसिड की गोलियां गर्भवती महिला को दें एवं स्तनपान से संबंधित उचित जानकारी गर्भवती महिला को अवश्य दें। गर्भवती महिला को यह अवश्य बताएं कि नवजात शिशु को जन्म के 1 घंटे के भीतर स्तनपान कराना शुरू करें एवं छह माह की आयु तक केवल स्तनपान ही कराएं और उसके बाद ही पूरक आहार बच्चों को देना शुरू करना है। साथ ही साथ बच्चे का नियमित टीकाकरण भी अवश्य कराते रहें।