UP : बोलीं आराधना देवी : अभिमान रूपी धनुष टूटने पर ही मिलती है शांति रूपी सिया



परिखरा के बाबा परमहंस नाथ शिव मंदिर के प्रांगण में चल रहा श्रीराम कथा
बलिया।
परिखरा के बाबा परमहंस नाथ शिव मंदिर के प्रांगण में चल रहे श्री राम कथा का समापन शनिवार को हुआ। कथा के अंतिम दिवस कथा पूज्या आराधना देवी जी ने कहा कि राम जी ने धनुष को उठा कर तोड़ दिया और जानकी जी ने श्री राम जी को जयमाल पहनाया। धनुष अभिमान का प्रतीक है, वहीं सीता भक्ति है। जीवन में भगवान की भक्ति पाना हो तो अभिमान रूपी धनुष का खंडन करना ही होगा। जब तक ये अभिमान रूपी धनुष नही टूटेगा तब तक भक्ति का आगमन जीवन में नहीं हो सकता। कहा कि विचार करने योग्य बात ये है कि राम जी ने धनुष को मध्य से ही तोड़ा ऊपर या नीचे से नही। क्योंकि धनुष अभिमान का प्रतीक है और अभिमान कभी बाल्यावस्था में नहीं होता। बताया कि अभिमान कभी वृद्धावस्था में नहीं होता बल्कि मध्य के युवावस्था में ही होता है। कहा कि सफलता प्राप्त करनी हो तो शांति रूपी सिया को पाना हो तो अभिमान रूपी धनुष का टूटना आवश्यक है। बताया कि ठीक उसी तरह रावण बहुत ही ज्ञानी और प्रतापी होते हुए भी अहंकार के कारण प्रभु राम को ही युद्ध के लिए चुनौती कर बैठा। जिसका अंत निश्चय ही था। कथा में पूज्या देवी जी ने रावण वध से प्रभु श्रीराम के अयोध्या लौटने तक का विस्तार पूर्वक वर्णन किया। साथ ही कहा कि आज अहंकार के वशीभूत होकर अनेक परिवार टूट के बिखर रहे। अहंकार के कारण कोई झुकना नहीं चाहता जिससे परिवार में अशांति फैल रही है। देवी जी ने कहा कि जब धनुष टूटा था तो लोगो ने धनुष से कहा तुझे राम जी ने तोड़ कर व अपने चरणों में गिरा के तुम्हारा अपमान कर दिया। जिसके बाद धनुष ने कहा मुझे तो टूटना ही था, क्योंकि जब तक मैं जुड़ा रहा लोगो को तोड़ता था। आज मेरा टूटना भी सार्थक हो गया। क्योंकि मेरे टूटने से प्रभु राम और मां सिया का मिलन हुआ। वहीं प्रभु ने मुझे अपने चरणों में गिरा कर मेरा सम्मान किया है। बताया कि जब प्रभु मुझे उठा रहे थे तो मुझे संकोच हो रहा था। क्योंकि मैं राम जी का दास हूं और दास को सर पर नहीं दास को तो भगवान के चरणों में ही होना चाहिए। राम जी ने मुझे अपने चरणों में डाल दिया इसका मतलब श्री राम जी ने मुझे स्वीकार लिया। कथा सुन वहां हजारों की संख्या में उपस्थित सभी भक्तगण भाव विभोर हो गये।

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